मनोरोग के बारे में आपको चिंतित क्यों होना चाहिए ?

किसी मनोरोग को पहचानने और उसका निदान करने के लिए आपको लगभग पूरी तरह उन बातों पर ही निर्भर करना पड़ता है जो कि लोग आपको बताते हैं । इसके निदान का प्रमुख उपकरण उस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करना है । मनोरोगों से ऐसे लक्षण पैदा होते हैं जिन्हें उनसे पीड़ित व्यक्ति और उनके आसपास के लोग महसूस कर सकते हैं । ये लक्षण मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते हैं :

शारीरिक – ‘सोमेटिक लक्षण’ । ये शरीर के अंगों और शारीरिक क्रियाकलापों पर असर डालते हैं । इनमें विभिन्न तरह के दर्द, थकान तथा नींद संबंधी समस्याएं शामिल हैं । इस बात को याद रखना जरुरी है कि मनोरोग अक्सर शारीरिक लक्षण पैदा करते हैं ।

महसूस करना – भावनात्मक लक्षण । उदास या डरा हुआ महसूस करना इसके प्रतिनिधि उदहारण हैं ।

सोचना – ‘ बौद्धिक’ लक्षण । आत्महत्या के बारे में सोचना, यह सोचना कि कोई आपको नुकसान पहुंचाने जा रहा है, साफ़-साफ सोचने में मुश्किल आना तथा भुल्लकड़पन इसके प्रतिनिधि उदहारण हैं ।

• व्यवहार – व्यवहार संबंधी लक्षण । ये लक्षण व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों से सम्बंधित हैं । इसके उदहारण हैं : आक्रमक तरीके से व्यवहार करना और आत्महत्या की कोशिश करना ।

•  निराधार कल्पनाएँ करना – इन्द्रियबोध संबंधी लक्षण । ये किसी इंद्रिय द्वारा पैदा किये जाते हैं और इनमें ऐसी आवाजें सुनना, चीजें देखना शामिल हैं जिन्हें और लोग सुन-देख नहीं सकते ।

हकीकत में यह सभी अलग-अलग तरह के लक्षण एक दूसरे  से बहुत   निकट से जुड़े हैं । उदहारण के लिए, देखिए कि किसी एक ही व्यक्ति में ये अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं ।

मोटे तौर पर मनोरोग की छः श्रेणियां है :

• आम मानसिक अस्वस्थताएं (अवसाद और चिंता से ग्रस्त रहना) ;

• ‘बुरी आदतें’ जैसे शराब और नशीली दवाओं के बिना न रह सकना ;

• गंभीर मानसिक अस्वस्थताएं (मनोविकृतियाँ या साइकोसिस) ;

• मंदबुद्धि होना ;

• बुजुर्गों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ;

• बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ।

आम मानसिक अस्वस्थताएं (अवसाद और चिंता से ग्रस्त रहना )

केस 1

पहला बच्चा होने के वक्त लूसी 23 साल की थी । बच्चे के जन्म के बाद शुरू के कुछ दिनों के दौरान यह थकान और उलझन महसूस कर रही थी । दाई ने उसे यकीन दिलाया कि वह भावनात्मक परेशानी से एक छोटे से दौर भर से गुजर रही है और ऐसा अनेकों माताओं को महसूस होता है । उसने सलाह दी कि लूसी और उसका पति काफी समय साथ गुजारें और मिल कर बच्चों की देखभाल करें । इससे उसकी मानसिक स्थिति में सुधार आएगा । उम्मीद के मुताबिक ही लूसी हो कुछ ही दिनों के भीतर अच्छा महसूस होने लगा । एक महीने तक सब टिक लगता रहा, उसके बाद बहुत धीरे-धीरे वह फिर थका और कमजोर महसूस करने लगी । उसकी नींद उचटने लगी । वह हालांकि थका महसूस करती, पर काफी सुबह जग जाती । उसके दिमाग में खुद अपने और अपने बच्चे तक के बारे में गलत ख्याल आते । दूसरी बात उसे और ज्यादा डराती । घर की जिम्मेदारीयों में उसकी दिलचस्पी खत्म होनी शुरू हो गई । लूसी के पति को उसका व्यवहार आलसी और लापरवाह लगता है और इससे वह चिढ़ने लगा । जब सामुदायिक नर्स बच्चे की रूटीन जाँच के लिए आई, तब कहीं जाकर लूसी के अवसाद का निदान हुआ ।

समस्या क्या है ? लूसी एक किस्म के ऐसे अवसाद से पीड़ित थी जो बच्चे के जन्म के बात मातों को हो जाता है । इससे प्रसव – पाश्चात (पोस्टनेटेल) का अवसाद कहते हैं ।

केस 2

रीता 58 साल की महिला थी जिसका पति पिछले साल अचानक मर गया था । उसके सब बच्चे बड़े हो गए थे और रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश में एक बड़े शहर चले गए थे । अपने पति की मौत के फौरन बाद उसे कम नींद आने लगी है और उसकी भूख खत्म हो गई । पिता की अंत्योष्टि के बाद उसके बच्चे गाँव से चले गए और उसके ये लक्षण और बिगड़ गए । उसके सर, पीठ और पेट दर्द के अलावा दूसरी जिस्मानी परेशानियाँ भी होने लगी । इनके कारण वह एक स्थानीय क्लीनिक में सलाह लेने पहुंची । वहां उसे बताया गया कि वह ठीकठाक है और नींद की गोलियां और विटामिन लिख दिए गए । इसके फ़ौरन बाद उसे बेहतर महसूस हुआ । खासकर उसकी नींद में सुधार हो गया । लेकिन, दो  सप्ताह के भीतर ही उसे फिर कम नींद आनी शुरू हो गई और वह दुबारा से क्लीनिक पहुंची । उसे और ज्यादा नींद की गोलियां और इंजेक्शन दिए गए । महीनों तक यही कुछ चलता रहा और आखिर में हालत यहाँ तक पहुंच गई कि उसे गोलियों के बगैर नींद आनी बंद हो गई ।

समस्या क्या है ? पति की मौत और बच्चों के अब उससे दूर चले जाने से पैदा हुए अवसाद के लक्षण उसमें शारीरिक रूप से सामने आ रहे थे । क्लीनिक के डॉक्टर ने उससे उसकी भावनाओं के बारे में नहीं पूछा और उसे नींद की गोलियां दे दीं । इसके कारण उसे नींद की गोलियों की आदत हो गई ।

 

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