कैसे पता करें कि कोई पीपीडी का शिकार है

गर्भावस्था, प्रसव,उसके बाद की स्थति के दौरान महिलाओं को हार्मोनल परिवर्तनों की एक बाढ. आ जाती है। गर्भावस्था के दौरान, प्रोजेस्टेरोन का स्तर उनके गर्भावस्था से पहले के स्तर से 20 गुना तक बढ़ जाता है, और एस्ट्रोजन का 200 से 300 गुना अधिक हो सकता है । एस्ट्रोजन गाबा (जीएबीए) को बढ़ा सकता है, एक चिंता-विरोधी और दर्द-निवारक न्यूरोट्रांसमीटर है। यह शरीर को आराम पहुंचाता। इसे फीलगुड हार्मोन भी कहते हैं। वहीं प्रोजेस्टेरोन मस्तिष्क में गाबा के रिसेप्टर को उत्तेजित करता है। गर्भ के बाद एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन की स्तर में जबरदस्त कमी आती है। इसकी वजह से भी पीपीडी हो सकता है। इसके लिए आप एंडोक्राइनोलॉजिस्ट से संपर्क में रहें।

विटामिन डी
विटामिन डी की कम और पोस्ट पार्टम डिप्रेशन का सीधा संबंध है। ऐसे में प्रसव के बाद धूप में कुछ समय बिताने  या फिर विटामिन डी के स्तर को बनाए रखने के लिए सप्लीमेंट लेने पर विचार करें।

आयरन
प्रसव के दौरान होने वाली ब्लीडिंग की वजह से प्रसव के बाद महिला के शरीर में आयरन की कमी हो सकती है। ऐसे में आयरन की पर्याप्त मात्रा डायट या फिर सप्लीमेंट के तौर पर लेनी बहुत जरुरी है। अध्ययनों में स्थापित हो चुका है कि आयरन की कमी ने पीपीडी को ट्रिगर किया है जबकि पर्याप्त मात्रा में इसका होना पीपीडी के होने की आशंका को कम करता है।

 

पीपीडी की शिकार माताओं में सामान्य तौर पर इस तरह के लक्षण देखे जाते हैं-

उदासी या निराशा को महसूस करना
सामान्य से अधिक रोना
बिना बात और कारण के चिंतित रहना
चिड़चिड़ा या बेचैन महसूस करना
बहुत ज्यादा या बहुत कम सोना
ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होना
क्रोध महसूस करना
मनोरंजक गतिविधियों में रुचि खोना
बार-बार सिरदर्द या शरीर में अन्य दर्द
बहुत कम या बहुत ज्यादा खाना
अपने बच्चे के साथ आत्मीयता में कमी
अपनी पालन-पोषण क्षमता पर संदेह करना
मित्रों और परिवार से कट जाना या उनसे बचना
इस तरह की नई माताओं के लिए प्रसवोत्तर अवसाद आम है। प्राकृतिक उपचार लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं। इस लेख में हम पीपीडी के लक्षणों को कम करने के लिए कुछ प्राकृतिक उपचारों पर विचार करेंगे।

ओमेगा -3 और ईपीए और डीएचए रिच डायट

ओमेगा -3 फैटी एसिड की कमी से पीपीडी के होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में ओमेगा 3 फैटी एसिड और ईपीए और डीएचए गोलियों का सेवन इस खतरे को कम कर सकता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि इसे सप्लीमेंट के तौर पर लेने की जगह इससे डायट से प्राप्त करना ज्यादा उपयोगी होता है। इसके लिए महिलाओं को ठंडा पानी खूब पीना चाहिए इसके सात ही फैटी फिश को सप्ताह मं एक दो बार लेना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि ऐसी मछली खाएं जिसमें सेलेनियम की मात्रा अधिक हो।

योग से भगाएं तनाव

बच्चे को घर लाने से बड़ी खुशी किसी भी माता पिता के लिए कुछ और हो ही नहीं सकती है। पर कई बार जब आपका घर रिश्तेदारों से भरा हो तो इसकी चुनौतियों के बारे में पता ही नहीं चलता। जब रिश्तेदार चले जाते हैं और सिर्फ माता पिता बचते हैं तो चुनौतियों का पिटारा खुलता है। ऐसे में तनाव होना बहुत स्वाभाविक है। माताओं के लिए बच्चे की जिम्मेदारी, नींद की कमी, स्तनपान कराने की चिंता तनाव की आशंका को बहुत बढ़ा देती है। इस तनाव से बचने के लिए आपको योग और ध्यान का सहारा लेना चाहिए। आप अनुलोम विलोम, प्राणायाम, शवासन जैसे आसान योग और ध्यान करके इस तनाव और पीपीडी दोनों को ही दूर सकती हैं।

प्रोबायोटिक्स लेना शुरू करें

गट माइक्रोबायोम शरीर के अंग और प्रणालियों के साथ परस्पर क्रिया करता है और उन्हें प्रभावित करता है, इनमें शामिल हैं:

हृदय
थाइरॉइड
त्वचा
हड्डी
प्रतिरक्षा तंत्र
मस्तिष्क
मस्तिष्क और आंत एक दूसरे के से संबंधित हैं। हृदय गति जैसी पैरासिम्पेथेटिक प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार वेगस तंत्रिका मस्तिष्क से आपके आंत के अंगों तक चलती है। बदले में, आंत के जीवाणु मस्तिष्क के साथ संचार करने वाले न्यूरोट्रांसमीटर उत्पन्न करते हैं। माइक्रोबायोटा सेरोटोनिन की सिंथेसिस और रिलीज को नियंत्रित कर सकता है। ऐसी स्थिति में प्रोबायोटिक्स की भरपूर मात्रा पीपीडी में मदद कर सकती है।

पर्याप्त नींद लें
कोई जरुरी नहीं कि जब बच्चे को  नींद आए तभी मां को नींद आए ऐसे में जन्म देने के तुरंत बाद महिलाओँ को पर्याप्त नींद ना मिलने की समस्या होती है। यदि नींद पर्याप्त ना मिले तो पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या हो जाता है। ऐसे में पर्याप्त नींद लेना पोस्टपार्टम डिप्रेशन में राहत दे सकता है।

 

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